1773 regulating act in hindi

नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं, आज हम बात करने वाले है 1773 regulating act की, यह वही एक्ट था जिसने  भारतीय संवैधानिक विकास की स्थापना की नीव रखी थी।

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट अंग्रेजो द्वारा भारतीयों लोगो के लिए बनाया गया पहला कानून था जो ब्रिटिश पार्लियमेंट द्वारा पारित करके भारत भेजा गया था यह अब तक का सबसे पहला कानून था जो भारतीयों के लिए बना था।  

1773 regulating act को भारत भेजे जाने के कारण 

इस एक्ट को भारत भेजने के पीछे बहुत से कारण थे लेकिन प्रमुख कारण यह था कि सन 1770 में बंगाल में एक भयानक अकाल पड़ा वह अकाल भारतीय इतिहास के सबसे भयानक अकालो में से  माना जाता है।

इस अकाल के दौरान भारतीय लोगो कि स्थिति इतनी बुरी थी कि उन्होंने मरे हुए पसुओ का मांस तक खाना पड़ा यहां तक अपने बच्चो तक को बेचा लोगो ने वो सब कुछ किया जो अपनी जान बचाने के लिए उन्हें ठीक लगा।

ये वो वक़्त था जब ईस्ट इंडिया कंपनी का राज लगभग पुरे भारत पर हो चूका था और अंग्रेजो के जुल्म भारतीय लोगो पर असहनीय थे।

भारतीय जनता टूट चुकी थी और अंग्रेजो की लूट चरम पर थी वो भारतीय संपत्ति को लूट खसोट रहे थे हालत ये हो गए थे कि भारतीय लोग भूख और प्यास के कारण मरने लगे थे और अंग्रेज सरकार ये सब कुछ जानते-देखते हुए भी अनजान बनने का ढोंग कर रही थी।

अब वक़्त आ चूका था कि ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को ख़तम कर दिया जाए और भारत में एक नया कानून बनाकर कंपनी के शासन को ब्रिटिश सरकार अपने हाथों में ले।

बंगाल उस समय भारत का सबसे धनी राज्य हुआ करता था और अंग्रेजो ने वहां से सारा खजाना लूटकर इंग्लैंड ले गए माना जाता है कि सोने चांदी से भरी बोरिया लेकर जब ये इंग्लॅण्ड पहुंचा करते थे तो वहां के लोग इन्हे नबाब कहकर पुकारा करते थे ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक लूटपाट में इतने व्यस्त थे।

कि ये भूल गए थे कि कंपनी घाटे में जा रही थी क्यूंकि कंपनी के कर्मचारी कंपनी का काम छोड़कर लूटपाट में लगे थे कंपनी कहती थी और हर साल जो कंपनी को लाभ हुआ करता था उसका कुछ प्रतिशत कंपनी इंग्लैंड सरकार को भी भेजा करती थी।

मगर कंपनी तो अपना काम छोड़कर लूटपाट कर रही थी जिस कारण कंपनी घाटे में चली गयी और ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिकों ने इंग्लैंड सरकार को कर देना बंद कर दिया।

अब इंग्लैंड सरकार परेशान हो उठी कि ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक तो इतने अमीर हैं और कंपनी का दिवालिया निकल चुका है और इसे छिपाने के लिए कंपनी के मालिकों ने इंग्लैंड सरकार से अपील की।

हमारा इस साल का कर माफ़ कर दिया जाए और हमें कंपनी की हालत सुधारने के लिए कुछ लोन दिया जाए अब इंग्लैंड सरकार ने निर्णय लिया की वो भारत को पूरी तरह अपने नियनत्रण में लेगी और ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिकों की मनमानी पर पूरी तरह से लगाम लगाएगी।

1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के तहत किये गए कार्य 

इस एक्ट के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन हेतु पहली बार एक लिखित संविधान  बनाया गया और कंपनी पर इंग्लैंड सरकार के  नियंत्रण की शुरुआत भी इसी एक्ट के प्रावधानों के द्वारा की गयी।

अभी तक ईस्ट इंडिया कंपनी को उसके मालिक चला रहे थे लेकिन इस एक्ट के तहत पहली बार ब्रिटिश सरकार ने यह तय किया की अब कंपनी का शासन हमारे द्वारा भारत भेजे गए बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के हाथों में होगा।

अब ये बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ही कंपनी का शासन चलाएंगे और कंपनी के शासन को अब २० सालो के लिए इन्हे सौंपा जायेगा और उसके बाद कंपनी के व्यापारिक अधिकार को २० सालो के लिए बढ़ाया जायेगा।

इन बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की संख्या की 24 रखी गयी थी जिनका कार्यकाल 6 साल रखा गया था भारत में ईस्ट इंडिया  कंपनी ने 3 परिषदें हुआ करती थी कलकत्ता,बम्बई और मद्रास जिन्हे इस एक्ट के तहत तीनो परिषदों को बंगाल के अधीन कर दिया गया।

अब बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल बना दिया गया और बम्बई और मद्रास के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर के अधीन कर दिया गया और बंगाल का पहला गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बना दिया गया।

इसी एक्ट के तहत सन 1774 में कलकत्ता में भारत केसबसे पहले सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी और भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश लार्ड एलिज़ा इम्पे को बनाकर भेजा गया तथा तीन अन्य न्यायाधीश भी भारत भेजे गए लार्ड हाईड, लार्ड चैम्बर लार्ड लैम्स्टर इसी एक्ट के तहत बंगाल में द्वैध शासन को भी ख़तम कर दिया गया।

कंपनी के कर्मचारियों या व्यापारियों को भारतीय राजाओ या जमीदारो से लिए जाने वाले उपहारों पर भी प्रर्तिबंध लगा दिया गया कंपनी पर न्यायिक नियंत्रण हो गया राजस्व सैन्य मामलो और व्यापर की जानकारी ब्रिटिश गवर्नमेंट तक पहुँचाना आवश्यक था।

1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के दुष्प्रभाव 

इस कानून को हम अल्प समय का या जल्दी समापत होने वाला कानून भी कह सकते है क्यूंकि इस एक्ट के तहत जो 4 सदस्यी कार्यकारिणी परिसद बंगाल के गवर्नर जनरल के साथ बनाकर भेजी गयी थी वह एक्ट के लागू होने के साथ ही आपसी मतभेदों में घिर गयी।

क्यूंकि अन्य कार्यकारी सदस्य वारेन हेस्टिंग्स को बेईमान समझते थे और वारेन हेस्टिंग्स ने न्यायपालिका और कार्यपालिका को साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया था।

वॉरेन हेस्टिंग्स ने मुख्य न्यायाधीश एलिज़ा इम्पे से दोस्ती कर ली थी अब जो वॉरेन हेस्टिंग चाहता था वही न्यायपालिका करती थी बंगाल के गवर्नर जनरल को ये अधिकार तो दे दिया गया कि बम्बई व मद्रास के गवर्नर उसके अधीन कार्य करेंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ वे अपनी परिसदो में अपनी मनमानी करते रहे।  

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